सोमवार, 27 जुलाई 2015

याद घणी आवे बिती री बाता

( हम मारवाड़ी हेँ )
"याद घणी आवे बिती री बाताँ,
गाँव रा गौना चरावता,
दडीयाँ रमता,
स्कूलोँ मेँ दाल बाटी खावता गेहूँ  लावता,
छोरियाँ ने बकरियाँ केर चीड़ावता,
टेक्टर री टोली लारे लमुटता,  खेल्डी रा खौखा खावता,
धोरिया  माथे गुड़ता,
मौरीया री पॉखा चुगता,
ढेंलडी़या लारे दौड़ता,
खैल्डे माथे हिंडो घालता,
धुड़ा रो घर बणाय रमता,
रौज माऊ कनू एक रूपियो लेर सकुल जावता,1
बोल्टी रा बौरिया खावता ,
फाटोड़ी चडीया पेरन सकूल जावता,
सकुल मे बाणीया रा छोरा ने कूटता,
छाने छाने बिड़ीया रा टुकड़ा पिवता,
गणाय कुपाव चुगूने जावता,
लुगाईयां रे डगळ री ठोकता,
फागण मे चंग बजांवता,
दीवाली ने टीकड़ीयां फोड़ता,"

(यह हमारे बचपन की मारवाड़ी यादें हैं हम ईनको कभी भूल नही सकते हैं)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें