गुरुवार, 18 जून 2015

दियाया भचीड़

"मारवाड़ी" भच्चीड़
एक बार एक महाराष्ट्र का गुरूजी की नोकरी राजस्थान में लग गई
राजस्थान में रहते हुऐ गुरूजी को कई साल हो गये
और गुरूजी को मारवाड़ी भाषा का काफी ज्ञान हो गया
और बे टाबरां ने केंवता की मने पूरी मारवाड़ी आवे है
बच्चा बोल्या गुरूजी मारवाड़ी तो पूरी म्हाने भी कोनी आवे थे कठेऊ सीख गया
बे बोल्या मने तो पूरी आवे है थे कीं पूछ सको हो

एक दिन गुरूजी सुबह सुबह बन में जायकर आया
टूंटी पर हाथ धोवा की टींगर बोल्या

गुरूजी दियाया भचीड़

गुरूजी सोच्यो बन में जाणे ने भचीड़ ही केवे है

हाँ भाई दियायो भचीड़
बात आई गई हूगी

दोपारां बोर्डिडिंग मेस में खीर बनाई
एक कानी गुरूजी दूसरी कानी छोरा बैठा जीमण ने

गुरूजी बोल्या भाई खीर की खुसबू तो घणी सांतरी आवे है लागे है खीर जोरदार बनी है

छोरा बोल्या पछ देखो काई हो गुरूजी
दयो भचीड़

गुरूजी सोच्यो खीर खाने ने भी भचीड़ ही केवे है शायद

शाम को मैदान में रस्सा कसी को खेल चाल रियो हो
गुरूजी एक छोर रस्से को पकङकर उभा हा

बठीनू छोरा आया और बोल्या कई करो गुरूजी
गुरूजी--भाई रस्सा खेंच प्रतियोगिता चालू है

छोरा--पछे देखो कांई हो गुरूजी
दयो भचीड़

गुरूजी रस्से ने परे फेंकन बोल्या
भचीड़ भचीड़ भचीड़ ओ कांई है भचीड़
सुबह से एक ही बात भचीड़
छोरा बोल्या गुरूजी म्हे पेली ही आपने कियो की

मारवाड़ी आदमी ने कोई कोनी समझ सके तो
आ तो मारवाड़ी भाषा है
गुरूजी बेहोश

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