शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

दारूरा दुरगण (दूहा)


पिण्ड झड़े , रोबा पडे़ , पड़िया सड़े पेंषाब ।
जीब अड़े पग लडथडे़, साजन छोड़ शराब ।। १ ।।
कॉण रहे नह कायदो, अॅाण रहे नह आब।
(जे) राण बाण नित रेवणो,(तो) साथी छोड शराब
11 २ 11
जमी साख जाति रहे ,ख्याति हुवे खराब ।
मुख न्याति रा मोड़ले ,साथी छोड़ शराब 11 ३ 11
परणी निरखे पीवने , दॉत आंगली दाब।
भॉत भॉत मंाख्यंा भमे, साजन छोड़ शराब 11 ४ 11
आमद सू करणो इधक , खरचो घणो खराब ।
सदपुरखॉ री सीखहे, साथी छोड़ शराब 11 ५ 11
सरदा घटे शरीर री , करे न गुरदा काम।
परदा हट जावे परा, आसव छोड़ अलाम 11 ६ 11
कहे सन्त अर ग्रंथ सब , निष्चय धरम निचोड़ ।
जे सुख चावे जीवणो, (तो) छाक पीवणो छोड़ 11 ७
11
मोनो अरजी रे मनां , मत कर झोड़ झकाळ।
छाक पीवणी छोड़दे, बोतल रो मुॅहबाळ 11 ८ 11
चंवरी जद कंवरी चढी, खूब बणाया ख्वाब ।
ख्वाब मिळगया खाक मे, पीपी छाक शराब 11 ९
11
घर मांेही तोटो घणों, रांधण मिळेन राब।
बिलखे टाबर बापड़ा , साजन छोड़ शराब ।। १0 ।।
दारू में दुरगण घणा , लेसमात्र नह लाब ।
जग में परतख जोयलो , साथी छोड़ शराब ।। ११ ।।

मोहन सिंह जी रतनू कृत

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