सोमवार, 5 जनवरी 2015

Marwari doha

इते इला आकाश, इते सिस सुरज उगे ।
इते नीर पवन्न, पाप पुन इते ज पूगै ॥
भूयंग जिते धर भार, अगन जित धृतता उठै ।
इते नखतर सत अंस, विरखा रुत बादळ वूठै ॥
जल गंग मेर सामंद जिते, जिते वेद हणवंत जत ।
कव भोम कहै करनल कला, सत एतां ऊपर सगत ॥
  ( कविवर श्री भोमजी बीठू  //मोरारदान गढवी )
दारु री दपटां उडे,
खपट खाजरु खास ।
मनमाफीक देसी मुरग,
आ एडमीन सूं आस ।
सूरज ऊगौ सांतरौ,कूकड मेली राळ।
धण संभाळै कांचळी,  पिव मूंछां रा बाळ ॥
"सरदी रा सुझाव"
"सरद वायरे छेड दी , रंग जमाती राग  ।
काया छूटी कंपकंपी, जाङो गयो है जाग  ।
जाङो गयो है जाग, आग सूॅ तपलो आ कर ।
खाओ दूध खजूर जळेबी फीणी जा कर ।
कहे "गिरधर"कविराय कि हल्दी रो है थोरो ।
दोय पैक लो पीव , जीव हो जावे सोरो ।।"
         गिरधारी दान रामपुरिया

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