गुरुवार, 22 जनवरी 2015

कठै गया बे गाँव आपणा

कठै गया बे गाँव आपणा
            कठै गयी बे रीत ।
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,
             गयो जमानो बीत ।
दुःख दर्द की टेम घडी में
        काम आपस मै आता ।
मिनख सूं मिनख जुड्या रहता,
       जियां जनम जनम नाता ।
तीज -त्योंहार पर गाया जाता ,
              कठै गया बे गीत ।
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,
             गयो जमानो बीत ।
गुवाड़- आंगन बैठ्या करता,
     सुख-दुःख की बतियाता।
बैठ एक थाली में सगळा ,
         बाँट-चुंट कर खाता ।
महफ़िल में मनवारां करता ,
           कठै गया बे मीत ।
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,
          गयो जमानो बीत ।।
कम पीसो हो सुख ज्यादा हो,
        उण जीवन रा सार मै।
छल -कपट,धोखाधड़ी,
        कोनी होती व्यवहार मै।
परदेश में पाती लिखता ,
          कठै गयी बा प्रीत ।
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,
           गयो जमानो बीत ।।

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